कपिल चड्ढा की त्वरित टिप्पणी: चंडीगढ़ के सुधी मतदाताओं ने अपना फैसला सुना दिया है। मतदाताओं ने अब की बार न भाजपा में विश्वास जताया और न ही कांग्रेस में, बल्कि आम आदमी पार्टी के Óयादा उम्मीदवार जितवाकर सीधे तौर पर ये संदेश दिया है कि एक मौका केजरीवाल की पार्टी को भी देना चाहिए। ये सोच कर कि आप के राष्ट्रीय संयोजक केजरीवाल ने बतौर मुख्यमंत्री जो काम दिल्ली में कर दिखाएं, वैसे ही चंडीगढ़ में भी कर दिखाएंगे।
पर…आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों को भी स्पष्ट बहुमत नहीं दिया। यानी त्रिशंकु सदन बनवा दिया। ये गलत किया। अब मेयर के लिए आम आदमी पार्टी को कांग्रेस का बाहरी समर्थन लेना पड़ सकता और उसके बदले में कुछ देना भी होगा। राजनीति में क्या दिया जा सकता और क्या लिया, मतदाता बखूबी समझते हैं। बेहतर था कि आप को बहुमत मिलता और काम खुलकर करने की आजादी जो अब नहीं मिल पाएगी। बाहर से समर्थन करने वालों की तलवार हमेशा लटकी रहेगी।
दूसरा पक्ष ये भी तो है कि चंडीगढ़ के मतदाता समझ रहे कि शहर के विकास और रखरखाव के लिए भाजपा को भी कई मौके दे लिए और कांग्रेस को भी, अब एक मौका आम आदमी पार्टी को भी दिया जाए। कुल मिलाकर चंडीगढ़ एमसी चुनाव के नतीजे पंजाब में अगले साल के शुरु में होने जा रहे विधानसभा चुनावों पर असर डालेंगे ऐसी चर्चा आज जोर पकड़ गई क्योंकि चंडीगढ़ पंजाब की राजधानी है।
कुछ भी कहो,
एमसी चुनाव के नतीजे भाजपा और कांग्रेस के आकाओं को ये सोचने को मजबूर करेंगे कि मतदाताओं के मन को पढऩा उतना आसान नहीं जितना वे समझ रहे थे। इसके अलावा अगर निगम के चुनाव जीतने हैं तो सत्ता मिलने पर काम करके दिखाएं और विपक्ष में हैं तो भी जिम्मेदारी पूरी शिद्दत के साथ निभाएं, वर्ना तो वही हाल होगा जो अब की बार हुआ है भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों का। यानी अशिकांश उम्मीदवार घर बिठा दिए जो जीत पक्की मानकर चल रहे थे। तभी तो कहा जाता है कि चुनाव में वोटर ही भगवान होता है। यानी चुनावी किस्मत का फैसला करने वाला।