चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों की तरफ से ‘मुफ्त की रेवड़ियों’ यानी वादों को लेकर पहले से बहस छिड़ी हुई है। सुप्रीम कोर्ट में भी यह मामला चल रहा है। इस बीच, चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों को लेटर लिखा है कि सिर्फ वादों से काम नहीं चलेगा, ये भी बताना होगा कि वे पूरा कैसे होंगे, उसके लिए पैसे कहां से आएंगे। आयोग ने पार्टियों से 19 अक्टूबर तक इस पर अपनी राय देने को कहा है।
चुनाव आयोग ने 4 अक्टूबर को सभी मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों को एक लेटर लिखा है। इसमें कहा गया है कि राजनीतिक दल अगर कोई चुनावी वादा करते हैं तो उन्हें साथ में यह भी बताना होगा कि अगर वह सत्ता में आते हैं तो वादे को कैसे पूरा करेंगे। इस पर कितना खर्च आएगा? पैसे कहां से आएंगे? इसके लिए वे टैक्स बढ़ाएंगे या नॉन-टैक्स रेवेन्यू को बढ़ाएंगे, स्कीम के लिए अतिरिक्त कर्ज लेंगे या कोई और तरीका अपनाएंगे? चुनाव घोषणा पत्र में एक तयशुदा प्रोफॉर्मा होगा जिसमें पार्टियों के चुनावी वादें तो होंगे ही, साथ में वे कैसे पूरे होंगे, इसका भी डीटेल देना होगा। पार्टियों को बताना होगा की राज्य की वित्तीय सेहत को देखते हुए उन वादों को कैसे पूरा किया जाएगा।
चुनाव आयोग का कहना है कि इस तरह की सूचनाएं होने से वोटर राजनीतिक दलों के वादों की तुलना करके सही फैसला कर सकता है। इसे अनिवार्य बनाने के लिए आयोग आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct) में जरूरी बदलाव की योजना बना रहा है। आयोग ने 19 अक्टूबर तक इस पर राजनीतिक दलों से सुझाव मांगे हैं। उसने लेटर में कहा है कि मैनिफेस्टो तैयार करना राजनीतिक दलों का अधिकार है लेकिन वह कुछ वैसे वादों को नजरअंदाज नहीं कर सकता जिनका ‘स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव’ प्रक्रिया पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। आयोग ने कहा है कि सिर्फ वैसे चुनावी वादें किए जाने चाहिए जिनको पूरा करना मुमकिन हो। यही वजह है कि ईसी ने अब सख्त रुख अख्तियार किया है। दरअसल, मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार की अध्यक्षता में आयोग की एक मीटिंग हुई थी। इसमें चुनाव आयुक्त अनूप चन्द्र पाण्डेय भी शामिल हुए थे। इसमें तय हुआ कि चुनावी वादों को लेकर आयोग महज मूकदर्शक नहीं बना रह सकता।